Shattila Ekadashi 2025: माघ का महीना भगवान विष्णु का महीना माना जाता है और एकादशी की तिथि विश्वेदेवा की तिथि होती है. श्री हरि की कृपा के साथ समस्त देवताओं की कृपा का यह अद्भुत संयोग केवल षटतिला एकादशी को ही मिलता है. इसलिए इस दिन दोनों की ही उपासना से तमाम मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं. इस दिन कुंडली के दुर्योग भी नष्ट किए जा सकते हैं. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो इस दिव्य तिथि पर किए गए तिल के दिव्य प्रयोग से आपके जीवन में ग्रहों के कारण आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं. इस बार षटतिला एकादशी का व्रत 25 जनवरी को रखा जाएगा.
तिल का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
षटतिला एकादशी में तिल के प्रयोग को बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है. तिल एक पौधे से प्राप्त होने वाला बीज है. इसके अंदर तैलीय गुण पाए जाते हैं. तिल के बीज दो तरह के होते हैं- सफेद और काले. यह तिल स्वभाव से भारी, रोगनाशक, वातनाशक, केशवर्धक होता है. तिल के दाने संतानोत्पत्ति की क्षमता को और कैल्शियम के तत्व को मजबूत करते हैं. पूजा के दीपक में और पितृ कार्य में तिल के तेल का प्रयोग ज्यादा होता है. शनि की समस्याओं के निवारण के लिए काले तिल का दानों का प्रयोग किया जाता है.
इन 6 तरीकों से होता है तिल का इस्तेमाल
- तिल स्नान
- तिल का उबटन
- तिल का हवन
- तिल का तपर्ण
- तिल का भोजन
- तिल का दान
षटतिला एकादशी पर उपवास की विधि
षटतिला एकादशी का व्रत दो प्रकार से रखा जाता है. निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. सामान्यतः निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए. इस व्रत में तिल स्नान, तिल युक्त उबटन लगाना. तिल युक्त जल और तिल युक्त आहार ग्रहण करें. ये एकादशी कष्टों को हरने वाली है.
षटतिला एकादशी पर कैसे करें विशेष स्नान?
प्रातः काल या संध्याकाळ स्नान के पूर्व संकल्प लें. पहले जल को सर पर लगाकर प्रणाम करें. फिर स्नान करना आरम्भ करें. स्नान करने के बाद सूर्य को तिल मिले जल से अर्घ्य दें. साफ वस्त्र धारण करें. फिर श्री हरि के मंत्रों का जाप करें. मंत्र जाप के बाद वस्तुओं का दान करें. जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं
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